आज हम आपको मृत्यु और पुन्रजन्म के बारे मे बताने वाला हुुुुं ।
स्वामी विवेकानंद जी के पुज्य गुरूदेव श्री रामकृष्ण परमहंस जी का उपदेश मे आपको बताने जा रहा हुं। उन्होनें बताया की बार बार जन्म से मुक्ति किस प्रकार मिलेगीं ।
स्वामी विवेकानंद जी के पुज्य गुरूदेव श्री रामकृष्ण परमहंस जी का उपदेश मे आपको बताने जा रहा हुं। उन्होनें बताया की बार बार जन्म से मुक्ति किस प्रकार मिलेगीं ।
रामकृष्ण परमहंस जी 5 उदाहरण दिये थे ।
● संसाराक्त बध्दजीव मृत्यु के समय भी संसार की बातें करता है । बाहर माला जपने व गंगा नहाने से क्या होगा ? भीतर संसार के प्रति आस्कति होतो वरामकृष्ण परमहंस जी 5 उदाहरण दिये थे व मृत्यु के समय कितनी ही आलतु-फालतु बाते बकता रहता है । तोता वैसे तो 'राधाकृष्ण' बोलता है , पर बिल्ली पकड़ती है तो अपनी स्वाभाविक बोली मे 'टें,टें' चिल्लता हैं ।
● ईश्वर कि भक्ति मे विश्वास नही है इसलिए तो जीव को इतना कर्मभोग भोगना पड़ता हैं।
देह त्यागते समय मन मे ईश्वर का चिंतन चले , इसके लिए पहले ही उपासना करना चाहिए । वह उपाय है अभ्यास-योग । यदि जीवनभर का ईश्वर चिंतन का अभ्यास किया जाए तो अंत समय मे भी ईश्वर का ही विचार आएगा ।
● मृत्यु के समय मनुष्य जो कुछ सोचता है । उसी के अनुसार अगला जन्म होता है , इसलिए साधन की अत्यंत आवश्यकता है । निरंतर अभ्यास करते हुए जब मन सब तरह की सांसरिक चिंताओ से मुक्त हो जाता है तो उसमे हर समय केवल ईश्वर का ही चिंतन होने लगता है । फिर तो मृत्यु समय भी नही छुटता हैं ।
● अगर कच्ची मिट्टी की हांडी फुट जाए तो कुम्हार उस मिट्टी से फिर नई हांडी बना सकता हैं। किंतु पक्की हुई हांडी के फुट जाने पर ऐसा नही किया जा सकता । इसी प्रकार अज्ञान अवस्था मे मृत्यु हो तो उसका पुन्रजन्म नही होता ।
● भुना हुआ धान बोने से अंकुर नही निकलता , बिना भुने धान से हो तो अंकुर आते हैं । इसी प्रकार परंतु यदि वह 'असिध्द'
अवस्था मे मरे तो उसे बार-बार जन्म लेना पड़ता है ।
आशा करता हुं की आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी ।
रामकृष्ण परमहंसजी के कथन
- बालयोगी
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