मीरा बाई का प्रसिद्ध दोहा व उनका कृष्ण प्रेम

मीरा बाई का जीवन परिचय 




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 मीरा ने पदों में निजी जीवनानुभवों की अभिवयक्ति की है किंतु  यह विचित्र संयोग है की न तो मीरा के  काव्य से उनके जन्म , जीवनकाल और माता, पिता , आदि के विषय में कोई प्रमाणित जानकारी नहीं मिलती और न ही अन्य स्रोत से | जानकारी के आधार पर केवल यही बताया जा सकता है की मीरा पन्द्रवीं  शताब्दी में जन्मी थी l उनका राजवंश से सम्बन्ध था l
ऐसा कहा जाता है की बचपन में ही इन्होने श्री गिरधर को अपना पति मान लिया था तभी से मीरा श्री कृष्णा की प्रेम पुजारिन हो गयी और उनके विवाह के बाद भी यह क् म  चलता रहा l मीरा निर्भिक साहसी और दृढ विचारो वाली थी l वह अपना रास्ता स्वयं चुनती थी l वह अपने मार्ग में आपने वाली  बाधाओ से डट कर सामना करती थी l

यद्यपि मीरा द्वारा रचित कई काव्य कृत्यों का उल्लेख किया जाता है , पर उनके वृत्त की भाति मीरा बाई की पदावली में संगृहीत पदों के अतिरिक्त अन्य रचनाये उपलब्ध नहीं है l

मीरा बाई का प्रसिद्व दोहा 



मैं गिरधर के घर जाऊँ ll
गिरधर म्हारा सांचो प्रीतम , देखत रूप लुभाऊं l
रेण पड़े तब ही उठी जाऊँ ,भोर भये उठी आऊँ l
 रैणदिना वाके सँग खेलूँ , ज्यूँ त्यूँ वहि लुभाऊँ l
जो पहिरावै सोइ पहिरू , जो दे सो खाऊं l
मेरी उन की प्रीत पुराणी ,उन बिन पल न रहाउ l
जहाँ बहैठावे तितही बैठूँ ,बेचें तो बिक जाऊँ l
मीरा के प्रभु गिरधर नागर , बार बार बलि जाऊँ l


 भावार्थ

मीरा कहती है की मैं तो गिरधर के घर जाती हूँ वही मेरा सच्चा प्रियतम है और मैं उसके रूप सौंदर्य पर मुग्ध हूँ l रात होते ही में उसके घर जाने के लिए तत्पर हो जाती हूँ तथा प्रातः काल होते ही वह से आ जाती हूँ l
 मैं दिन रात उसके साथ खेलती हूँ तथा हर प्रकार से उसे प्रस्सन करने का  प्रयत्न करती हूँ वह मुझे जो कुछ पहनाये वह पहनती हूँ और जो कुछ खाने को दे वह कहती हूँ  l

मीरा बताती है की मेरी और उनकी प्रीति पुराणी है और मैं उनके बिना एक पल भी नहीं रह सकती वह जब चाहे मैं वही बेठुंगी और यदि वह मुझे बेचना भी चाहे तो में सहर्ष बिक जाउंगी l

मीरा कहती है की गिरधर नागर यानि श्रीकृष्ण मेरे स्वामी है तथा मैं बार बार उन प४ न्योछावर हूँ


 धन्यवाद मित्रो

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