भारत के महान संत : देवर्षि नारद का जीवन परिचय

देवर्षि नारद का जीवन परिचय और उनकी लीलाये - 

                    

अहो ! देवर्षि नारद धन्य है जो वीणा बजाते , हरिगुण गाते और मस्त होते हुए आतुर जगत को आनन्दित करते करते रहते है ।
 
                                                         - श्रीमद् भागवत

देवर्षि नारद श्रीभगवान के नित्य पार्षद है , भगवान का स्मरण करना ही इनका शाश्वत जीवन है, इनके नाम मात्र से ही ह्दय मे हरि भक्ति के भाव उमड़ने लगते है । हिन्दुओ के सभी धार्मिक शास्त्र  मे इनका परिचय मिलता है । नारद श्रीभगवान के मानस् अवतार है ।
ये भक्तियोग के महान आचार्य है । नारद का स्वभाव देवकार्य सरंक्षण व आसुरी शक्ति के विनाश के लिए माना जाता है ,पुराणो मे इस बात प्रमाण मिल जाता है । नारद जी का प्रमुख कार्य हरि भक्ति का प्रचार करना है ।
इनकी गणना भागवत संप्रदाय के प्रमुख 12 आचार्य मे की जाती है , वे महाभागवत के किर्तन आचार्य है । समस्त जगत् के कल्याण मे वे निरंतर लगे रहते है । दैव दैत्य मे समानता रखते है, निस्देंह ही नारद जी एक परम दिव्य, अमित विचित्र और असाधारण है ।

बालक नारद से देवर्षि नारद - 


               

नारद ने भगवान का प्रेम वरदान अपने पुर्व जन्म के एक कर्म स्वरूप पाया था । वे पहले जन्म मे उपबर्हण नामक एक गंधर्व थे । संगीत मे उनकी बडी़ रूची थी , वे दिखने मे हष्ट पुष्ट और सुन्दर थे । एक बार ब्रह्मा की सभा मे भगवान का गुणगान करने के लिए बडे़ बडे़ किन्नर और गंधर्व एकत्रित हुये । उस सभा मे नारद भी थे । नारद अपने साथ स्त्रिया लेकर गये थे । हरि गुणगान के समय मे उनकी नजर सभा नृत्य कर रही रमणियो पर पडी़ और वे अपने कर्तव्य का सही तरीके से पालन नही कर पाऐ । इस बात से क्रोधित होकर ब्रह्मा जी ने उन्हे शुद्रयोनि मे जन्म लेने का श्राप दिया । ब्रह्मा जी का श्राप उनके लिए वरदान साबित हुआ । उनका जन्म एक शुद्र नारी के गर्भ से हुआ लेकीन ब्रह्मा जी की कृपा से उनमे सभी गुण ब्रह्मणो वाले थे । माता को उनसे असीम स्नेह था । वे बचपन से ही साधु- सन्तो की सेवा मे लगे रहते थे , इस कारण  नारद का ह्दय परमशुध्द हो गया , सन्तो से नित ही हरि चर्चा सुना करते थे , सन्तो की सेवा करना उनका परमधर्म बन गया था , इस बात से प्रसन्न होकर सन्तो ने नारद को भगवान का ध्यान करने का उपदेश दिया और भगवान जप की पावन विधि बताई । सन्तो के जाने के बाद नारद पुर्ण रूप से हरि साधना मे डुब गये । कुछ समय बाद रात को गाय दुहते समय साँप काटने से इनकी माता का देहान्त हो गया । माता की मृत्यु नारद की दृष्टी मे हरि कृपा ही थी , अब नारद माता के स्नेह संबध से आजाद हो चुके थे । अब नारद तप करने के लिए घर से निकल पडे़ । कुछ दुर जाने पर वे थक गये । एक पीपल के नीचे बैठकर सन्तो द्वारा बतायी विधि से भगवान का जाप करने लगे । क्षण क्षण मे उनकी व्याकुलता बढने लगती है । अचानक उनके ह्दय मे थोडे़ समय के लिए नारायण ज्योति प्रकट हुयी और विधि से भगवान का जाप करने लगे । क्षण क्षण मे उनकी व्याकुलता बढने लगती है । अचानक उनके ह्दय मे थोडे़ समय के लिए नारायण ज्योति प्रकट हुयी औरस दिव्य ज्योति का दर्शन कर सकता है । इस घटना के बाद वे नारायण के ही स्मरण चिंतन मे लग गये और शरीरान्त के बाद वे ब्रह्मा के मानस पुत्र हुए ।विधि से भगवान का जाप करने लगे । क्षण क्षण मे उनकी व्याकुलता बढने लगती है । अचानक उनके ह्दय मे थोडे़ समय के लिए नारायण ज्योति प्रकट हुयी औरस दिव्य ज्योति का दर्शन कर सकता है । इस घटना के बाद वे नारायण के ही स्मरण चिंतन मे लग गये और शरीरान्त के बाद वे ब्रह्मा के मानस पुत्र हुए ।

भगवत भक्तो का मार्गदर्शन करते रहते देवर्षि नारद - 

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चारो युगो मे मे उनकी जीवन घटनाए का संबध है । प्रह्लाद की माता को नारद ने ही उपदेश दिया था , इसके प्रभाव से ग्रभस्थ शिशु प्रह्लाद भगवद्भक्ति संस्कारो से सम्पन्न हुऐ थे । इसी प्रकार नारायण की खोज मे निकले बालक ध्रुव का पथ प्रदर्शन नारद ने ही किया था । जो कोई भी नवीन साधक भगवत दर्शन के इच्छुक है उन्हे नारद जी को ही अपना आदर्श मानकर आगे बढना चाहिए ।

वाल्मिकी जी को रामायण लिखने के लिए प्रेरणा -

रामायण के रचना का श्रेय नारदजी को ही जाता है उन्ही की प्रेरणा से वाल्मिकी जी ने रामायण की रचना की थी । मुलरामायण नामक ग्रन्थं की रचना नारदजी ने ही की थी । एक बार वाल्मिकी जी के आश्रम मे  नारद का आगमन हुआ देवर्षि ने सक्षेपं मे उन्हे रामचरित्र सुनाया । वाल्मिकी ने शिष्यो सहित देवर्षि का पुजन किया और इसके बाद वे आकाशमार्ग से चले गये । उसके बाद उन्होने नारदजी द्वारा सुनाये गये रामचरित्र के आधार पर वाल्मिकी रामायण रच डाली ।

व्यास जी को श्रीमद्भागवत की प्रेरणा देना -

भागवत की रचना के लिए व्यास को प्रेरणा देने का श्रेय नारद को ही जाता है । वेदो के विभाजन, ब्रह्मसुत्र, महाभारत व पुराणो की रचना के बावजुद भी व्यास जी को शान्ति नही मिली । वे सरस्वती नदी के किनारे बैठकर इन्ही बातो का चिन्तन कर रहे थे नारद जी आ गये । व्यास ने उनका विधिपुर्वक पुजन किया और उसके बाद आत्मशान्ति का मार्ग पुछा । नारद ने कहा की आपने भगवान वासुदेव का पुर्ण रूप से वर्णन नही किया है इसी कारण आपका चित् अशान्त है । नारद ने उन्हे भगवत रचना की प्रेरणा दी ।

देवर्षि नारद का श्राप भी बडा़ पुण्यकारी - 

नारद का श्राप की बडा़ पुण्यकारी है । एक बार कुबेर के दोनो पुत्र मन्दाकिनी नंदी के तट पर बैठे हुए थे मदींरा का पान कर रहे थे और स्त्रिया उनके साथ जल मे जाकर क्रिडा़ कर रही थी । वे मदान्ध हो गये थे । तभी वहा देव संजोग से देवर्षि नारद का आगमन हुआ । वस्त्रहीन अप्सराओ ने श्राप से भय से वस्त्र पहन लिये लेकीन यक्षो ने नही पहने । उनका अनुग्रह ठुकराने पर देवर्षि ने उनको वृक्षयोनि मे जाने का श्राप दिया और कहा की तुम्हारा उध्दार भगवान कृष्ण के हाथो होगा । नारद के श्राप फलस्वरूप उन दोनो का उध्दार प्रभु ने उखल बंधन लीला मे किया था ।

देवर्षि नारद की  रचनाऐ - 

     नारद जी की रचनाऐ 


नारद पाचरात्र , भक्तिसुत्र , मुलरामायण , मुलभागवत और ज्योतिष शास्त्र मे उनके अनेक ग्रन्थं उपलब्ध है ।


        

                                                                     - बाल योगी

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